Wednesday, September 20, 2017

Raindrops!

बारिश की बूंदें...कितनीं?


कुछ ठहरें गुलाब की दो पँखुड़िओं पर
चमकें हीरों सी नई किरणों में
महकते पलों को मन के कोनों से
फिर से जगा दें उतनीं

दो हाथ फैलाए खिड़की से
भीग जाएँ फिर थामे अंजलि में
वो भर भर जाएँ, छलके फिर
बहें मिलने धरती से उतनीं

चलते राहों पर गहराये
बादलों से गरज कर बरस पड़े
कोरा न रहे तन और मन को भी
भीगा कर हरा दें उतनीं

झरने लगें बहने कल कल कल
भर जाएँ ताल एक हो जल थल
आकाश भी मिल जाए धरती को जब
क्षितिज को धुंधला दें उतनीं

बारिश की बूंदें...उतनीं 
Raindrops...Hands-full of them
 -BhairaviParag

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