Friday, November 27, 2015

धूप में एक फूल

सूर्य खिला है आसमान में 
धुप सुनहरी है लाया 
विश्व सारा दिख रहा है उजला
साफ़ साफ़ हर कण दिखलाया

उद्यम में लगा जग सारा
प्रकाश को गले लगाया
सुवासित श्वेत शतदल सुमन
कहीं कुञ्ज में था, दिख न पाया 

तप्त हुआ वातावरण
लौ का जैसे बादल लहराया 
पुष्प दल से नमी लगी उड़ने
रंग भी ज़रा सा कुम्हलाया 

पर वही गर्म हवा
कभी शीतल पवन थी, जब था साया
जो जाना था ह्रदय से 
उसे अनदेखा न कर पाया

तृषा कई दिनों की थी बुझी
जब पवन था वर्षा लाया 
उन्हीं पंखों पर आया था जल
बन ओस किरणों को था चमकाया

समय बदल गया है, देखो,
बात हमारी भी मानो 
संभल जाओ, जी जाओगे
पत्तों ने बहुत समझाया

दाह लगा हुआ था पर
शीतलता भूल न पाया
फूल कभी कंटक बन न पाया
क्या करे, मुरझा गया 

-BhairaviParag